किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं

उपलब्ध योजनाओं की समीक्षा करें। हमने मुफ़्त से लेकर सशुल्क स्तर तक सभी के लिए न्यूनतम संभव मूल्य निर्धारित करने का हर संभव प्रयास किया है, और हम मानते हैं कि हमारे प्लेटफ़ॉर्म से आपको मिलने वाले मूल्य के लिए मुद्रा के प्रकार- मुद्रा को कई आधारों पर कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। यहां पर हम मुद्रा की भौतिक स्थिति एवं मांग के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण बता रहें हैं-.99 और $2.99 अच्छे सौदे हैं।
मुद्रा का प्रसार एवं मापन
मुद्रा का प्रसार एवं मापन :- किसी भी समय अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा को मापने के लिए केन्द्रीय बैंक कुछ मापक का प्रयोग करते हैं। भारत के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा 1977 में एक वर्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके द्वारा बाजार में किसी समय पर कितनी मुद्रा उपलब्ध है, मापने के लिए 4 मापक तय किये गए जिन्हें M1, M2, M3 एवं M4 नाम से जाना जाता है। मुद्रा के मापन को समझने से पहले अर्थव्यवस्था में तरलता शब्द को समझना आवश्यक है।
अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) – अर्थव्यवस्था में तरलता दो प्रकार से हो सकती है –
1. बाजार की तरलता – किसी भी समय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा को तरलता कहा जाता है। यदि तरलता अधिक है किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं तो मुद्रास्फीति की स्थित उत्पन्न हो सकती हैं जबकि तरलता कम होने की किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं स्थिति में अपस्फीति या मंदी आ सकती है।
मुद्रा का मापन
1. M1= CU (Coins and Currency) + DD (Demand and Deposit)
CU अर्थात लोगों के पास उपलब्ध नगद (नोट एवं सिक्के), DD अर्थात व्यावसायिक बैंकों के पास कुल निवल जमा एवं रिजर्व बैंक किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं के पास अन्य जमाये। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।
2. M2= M1 + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमांए
3. M3= M1 + बैंक की सावधि जमाये(FD)
4. M4= M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमा राशि (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों को छोड़कर)
M1 से M4 की तरफ जाने पर मुद्रा की तरलता घटती है, परन्तु बाजार की तरलता बढ़ती जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा का मूल्य निर्धारण
1. बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी देश की मुद्रा की मांग के आधार पर उसके मूल्य का निर्धारण किया जाता है। इसे प्रवाही विनिमय दर(Floating exchange rate) कहते हैं। प्रवाही इसलिए क्योंकि यह दर कम ज्यादा होते रहती है। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य निरपेक्ष(अकेले) नहीं होता वो हमेशा दूसरी मुद्रा के सापेक्ष होता है, अर्थात एक देश की मुद्रा की दूसरे देश के मुद्रा के साथ तुलना की जाती है इसे विनिमय दर(Exchange rate) कहते हैं। जैसे 1$=74रू0
2. सरकार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – कभी-कभी सरकारें भी जानबूझकर अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम या ज्यादा कर देती है। ऐसा उस देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है –
किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं
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भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रकl8 H.w
व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार स .
व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्रक किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है"?
Solution : एक देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि इस क्षेत्र के अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार इन ही सभी सेवाओं को उपलब्ध कराती है। अधिकतर आर्थिक गतिविधियां ऐसी हैं जिनके प्राथमिक जिम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्रक की है। सार्वजनिक क्षेत्र जोखिम भरी सार्वजनिक कल्याण संबंधी गतिविधियों में निवेश करके देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस क्षेत्र का मुख्य उद्देश जनकल्याण होता है। यह क्षेत्र लोगों को शिक्षा ,स्वास्थ्य ,भोजन एवं सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं प्राप्त करवाता है। अतः सार्वजनिक क्षेत्र देश के विकास में भारी पैमाने पर परियोजनाओं को चलाकर महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं
अस्वीकरण :
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पैकेज और मूल्य निर्धारण
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उधारी पर जोर
हाल में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की सालाना बैठकों में इस बिंदु पर चर्चा केंद्रित रही कि दुनिया के देश किस तरह कोविड-19 महामारी से निपटने और इसके असर से बाहर निकल सकते हैं। चर्चा के दौरान नीतिगत एवं वित्तीय रणनीतिकारों में व्यापक पैमाने पर उधार लेने पर सहमति बनी। यह निष्कर्ष खास तौर पर पर्यवेक्षकों का ध्यान खींच रहा है। दुनिया के विकसित देशों में यह उधारी खुली एवं बिना किसी सीमा के हो सकती है। कुछ मायनों में विकसित देशों के नीति नियंता पहले ही उधार लेने का विकल्प अपनाने के लिए तैयार हो गए थे। उदाहरण के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व का ध्यान इस पहलू पर गया था कि कई वर्षों से अर्थव्यवस्था को समर्थन देने वाली नीतियों, बहीखाते में बेतहाशा वृद्धि और बेरोजगारी दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर रहने के बावजूद अमेेरिकी अर्थव्यवस्था में महंगाई दर में इजाफा तेजी से नहीं हो पाया। अस्थायी रोजगार की व्यवस्था तैयार होने एवं विभिन्न प्रकार के संरचनात्मक बदलावों से कदाचित यह स्थिति पैदा हुई थी। अस्थायी रोजगार ने सशक्त श्रम बाजार, वेतन वृद्धि और सामान्य महंगाई के बीच संबंध विच्छेद कर दिया। यह स्पष्ट हो गया कि लघु अवधि की महंगाई समायोजित मौद्रिक नीति की एक काट के तौर पर अपना वजूद खो चुकी थी। चूंकि, यह धारणा महामारी से पहले ही पनप चुकी थी, इसलिए महामारी से निपटने के लिए विकसित देशों में एक टिकाऊ उधारी नीति के बजाय वित्तीय एवं मौद्रिक किस प्रकार की परिसंपत्तियां उपलब्ध हैं नीति में विस्तार पर अधिक जोर दिया गया। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।