डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है

Digital Rupees (₹) के नुकसान और फायदे
Digital Rupees (₹) के नुकसान और फायदे| Digital Currency के लाभ व हानि क्या हैं?
डिजिटल रुपया का आज दिनांक 01/12/2022 से लेनदेन शुरू हो गया है। इसकी जानकारी सरकार ने पहले ही जारी कर दी थी। Digital रुपया पेमेंट का एक नया तरीका होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई 1 दिसंबर 2022 एयरटेल डिजिटल रुपए का पहला पायलट प्रोजेक्ट लांच कर दी है रिजर्व बैंक के इस डिजिटल करेंसी को सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी(CBDC) का नाम दिया गया है। अब आपके दिमाग मेरा सवाल जरूर बोलता होगा कि सीबीडीसी क्या है तो चलिए आपको CBDC के बारे में बताते हैं
Table of Contents
CBDC क्या है?
Central Bank digital currency आरबीआई द्वारा जारी की गई डिजिटल करेंसी है यह एक लीगल टेंडर होगा आरबीआई के मुताबिक या सेंट्रल बैंक द्वारा जारी की गई करेंसी होगी लेकिन पेपर या पॉलीमर से अलग हो गई यह एक सॉवरेन करेंसी है और सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट में इसे लायबिलिटी के तौर पर दिखाया जाएगा CBDC को बराबर मूल्य पर केस में एक्सचेंज किया जा सकेगा।
CBDC की क्या है जरूरत?
डिजिटल करेंसी को जलाया डैमेज नहीं किया जा सकता है इसलिए एक बार जारी किए जाने के बाद यह हमेशा रहेंगे जबकि नोट के साथ ऐसा नहीं होता है किफायती होने की वजह से CBDC को लेकर दुनियाभर में काफी अधिक दिलचस्पी देखने को मिली है हालांकि अब तक कुछ ही देश इस मामले में पायलट प्रोजेक्ट से आगे बढ़ पाए हैं। CBDC किसी डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है भी देश की ऑफिशियल करेंसी का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या डिजिटल टोकन होता है।
वास्तव में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी डिसेंट्रलाइज्ड होता है इसका मतलब है कि सभी तरह की सूचनाएं एक नेटवर्क के सभी कंप्यूटर पर होती है। हालांकि डिजिटल रुपया इससे अलग होगा इसकी वजह यह है कि इसे आरबीआई जारी करेगी यह वास्तव में डिसेंट्रलाइज्ड नहीं होगा इसे आसानी से आप मोबाइल से एक दूसरे को भेज पाएंगे और आप हर तरह के सामान खरीद पाएंगे और सर्विस इसका इस्तेमाल कर सकेंगे।
इस करेंसी को डिजिटल बनाने और कैशलेस पेमेंट को गति देने के लिए केंद्रीय बैंक ने यह तरीका अपनाया है। अब सवाल उठता है कि क्या पेमेंट का नया तरीका यूपीआई और मोबाइल वायलेट जैसे पेटीएम और गूगल पर फोन पर अमेजॉन पर आज की तरह होगा। तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यहां इनकी तरह काम नहीं करेगा तो आपके दिमाग में यह सवाल जरूर उठता होगा कि इसको यूज़ करने के लिए हम क्या करेंगे और कैसे यूज करेंगे तो चलिए जानते हैं इसके बारे में हमें से कैसे यूज करेंगे।
कैसे आम आदमी डिजिटल करेंसी का यूज करेंगे
डिजिटल रुपए वास्तव में ब्लॉकचेन सहित अन्य टेक्नोलॉजी पर आधारित करेंसी होगी। डिजिटल करेंसी दो तरह की होती है रिटेल और होलसेल होलसेल करेंसी का इस्तेमाल जहां वित्तीय संस्थाएं करती हैं वही रिटेल करेंसी का डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है इस्तेमाल आम लोग और कंपनियां करती हैं।
यह पैसे एक डिजिटल टोकन की तरह होंगे जो लीगल टेंडर के तौर पर काम करेंगे इसके साथ ही भारत में जितनी तरह की करेंसी है उतनी ही यूनिट में डिजिटल करेंसी होंगी जैसे ₹5 , ₹10, ₹50, 100₹ या ₹500 आदि। बैंकों की ओर से जारी की जाएगी इसका इस्तेमाल भी डिजिटल वायलेट की तरह डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है होगी जो बैंक की ओर से दिए जाएंगे और उन ऐप के जरिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा यह उन्हीं एप्लीकेशन से मिलता-जुलता होगा जीने से अभी आप ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करते हैं।
फोन पे, गूगल पे और पेटीएम जैसे ऐप से कितना अलग होगा?
एक्सपोर्ट का कहना है कि डिजिटल रुपए का मुकाबला मोबाइल वाले जैसे पेटीएम और गूगल पे, फोन पे, अमेजॉन पे आदि से नहीं है। डिजिटल रुपया पेमेंट का एक नया तरीका है। इसके तहत आप को बैंक से एक बार डिस्टर्ब किया खरीदना होगा उसके बाद आप वायलेट से वॉलेट में इसे लेनदेन कर पाएंगे।
पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन विश्वास पटेल का मानना है कि एक ब्लॉक चैन बेस्ट डिजिटल टोकन फॉर्म करेंसी है। रिटेल डिजिटल करेंसी में आपको बिना किसी बैंक को शामिल किए बिना ही लेन-देन में सक्षम होना चाहिए जैसे कि फिजिकल करेंसी में होता है लेकिन यह यूपीआई से काफी अलग है क्योंकि यूपीआई में आपके खाते से पैसा डेबिट होता है।
पायलट प्रोजेक्ट में कौन-कौन से बैंक और शहर होंगे शामिल
पहले चरण की शुरुआत देश भर में 1 दिसंबर 2022 से हो गई है। देश भर में 4 शहरों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसी आईसीआई बैंक, यस बैंक और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के माध्यम से होगा। इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, और कोटक महिंद्रा बैंक को इस पायलट प्रोजेक्ट में शामिल किया जाएगा।
किन-किन शहरों में शुरू हुआ पायलट प्रोजेक्ट- मुंबई नई दिल्ली बेंगलुरु ऑल भुनेश्वर को कवर किया जाएगा। तब धीरे-धीरे अहमदाबाद, गंगटोक, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, कोच्चि, लखनऊ, पटना और शिमला तक इसका विस्तार होगा।
Digital Rupees (₹) के नुकसान और फायदे
- टैक्स चोरी नहीं हो पाएगी जिससे सरकार को टैक्स के कलेक्शन में भारी भरकम इजाफा होगा।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में डिजिटल रुपया मददगार साबित होगा।
- लोगों को कैश लेकर जेब में चलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- इस रुपए को फिजिकली चुराया नहीं जा सकता।
- मोबाइल वॉलेट की तरह ही इसमें पेमेंट करने की सुविधा होगी।
- विदेशों में पैसा भेजने की लागत में कमी आएगी।
- डिजिटल रुपया को बैंक मनी और गैस में आसानी से कन्वर्ट कर सकेंगे।
नुकसान-
- डिजिटल रुपए के नुकसान के बारे में बात किया जाए तो इसका सबसे घातक नुकसान यह माना जा सकता है कि इस बेरोजगारी की दुनिया में और बेरोजगारी बढ़ सकती है क्योंकि बैंक कर्मचारियों की इतनी आवश्यकता नहीं पड़ेगी जितनी कि इस समय जरूरत पड़ रही है।
- डिजिटल रुपया पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। इस पर आरबीआई का कहना है कि डिजिटल रुपया पर ब्याज दिया जाए तो करेंसी मार्केट में स्थिरता ला सकता है।
- आमतौर पर केस में लेनदेन करने से पहचान गुप्त रहती है लेकिन डिजिटल डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है ट्रांजैक्शन पर सरकार की पहली नजर होगी।
DigiYatra: जानें डिजियात्रा में कैसे आपका चेहरा बनेगा बोर्डिंग पास और पैसेंजर्स के डेटा की सुरक्षा का क्या है इंतजाम
विशेष संवाददाता, नई दिल्ली: दिल्ली डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है एयरपोर्ट पर डिजियात्रा सर्विस शुरू हो गई है। इसका मतलब यह है कि अब आपको अपनी पहचान साबित करने के लिए कोई डॉक्युमेंट दिखाने की जरूरत नहीं होगी। आपका चेहरा ही आपकी पहचान होगा। इससे एयरपोर्ट पर टाइम बचेगा और लंबी लाइनों में खड़े रहने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा एयरपोर्ट पर आपका अनुभव काफी हद तक कॉन्टैक्टलेस हो जाएगा। गुरुवार को दिल्ली, बेंगलुरु और वाराणसी एयरपोर्ट पर इसकी शुरुआत की गई। अगले साल मार्च तक देश के चार और एयरपोर्टों हैदराबाद, पुणे, विजयवाड़ा और कोलकाता में इसकी शुरुआत दूसरे चरण में कर दी जाएगी। तीसरे चरण में देश के सभी एयरपोर्ट्स पर इसकी शुरुआत होगी। डिजी यात्रा के लिए यात्रियों को एक बार अपना रजिस्ट्रेशन करना होगा। उसके बाद चेहरे की पहचान करके ई-गेट के जरिए यात्रियों को एंट्री मिलेगी।
Mumbai Airport: मुंबई एयरपोर्ट पर 40 मिनट तक सर्वर डाउन, बैगेज पॉइंट पर लगी यात्रियों की लंबी कतारें
पूरी तरह सुरक्षित डिजियात्रा सिस्टम
सिंधिया ने कहा, ‘डिजियात्रा सिस्टम में डेटा को एनक्रिप्टेड रूप में सुरक्षित रखा जाएगा। पहले हमने एक सेंट्रलाइज्ड सिस्टम पर विचार किया जिसमें सारे डेटा हों, लेकिन फिर प्राइवेसी, डेटा चोरी के विषयों पर ध्यान गया। हमने डिसेंट्रलाइज्ड सिस्टम को चुना जिसमें यात्रियों की डिटेल यात्री के मोबाइल फोन पर ही होगा। आपका डेटा सुरक्षित रखा जाएगा। डेटा यात्री के फोन में सुरक्षित होगा और एयरपोर्ट पर साझा किया जाने वाला डेटा यात्रा के 24 घंटे बाद ही हटा दिया जाएगा।’ पैसेंजर्स जिस एयरपोर्ट से उड़ान भरेंगे उसे डेटा यात्रा से 24 घंटे पहले ही भेजा जाएगा। डिजियात्रा एंड्रॉयड और आईओएस प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध है। अगर, कोई भी यात्री डिजी यात्रा सेवा का इस्तेमाल करता है तो उसके चेहरे की बायोमीट्रिक ली जाएगी। पहले से सेव डेटा के मुताबिक, पहचान की जाएगी जांच सही होने पर एयरपोर्ट में जाने की इजाजत दी जाएगी। अगर पोर्टल पर डेटा सेव नहीं है, तो एंट्री की इजाजत नहीं मिलेगी।
डिजियात्रा कहां-कहां?
गुरुवार से दिल्ली एयरपोर्ट के साथ बेंगलुरु और वाराणसी एयरपोर्ट पर डिजियात्रा सर्विस शुरू हो गई है। मार्च तक कोलकाता, हैदराबाद, विजयवाड़ा और पुणे में भी यह सर्विस शुरू हो जाएगी। धीरे-धीरे पूरे देश में इसे लागू कर दिया जाएगा।
ऐप कैसे करेगा काम?
सबसे पहले डिजियात्रा ऐप डाउनलोड करें और रजिस्ट्रेशन करें। फिर आधार कार्ड की डिटेल भरें या डिजिलॉकर ऐप से लिंक करें। इसके बाद फोन से सेल्फी लेने का ऑप्शन आएगा, जिससे आपका चेहरा ऐप में रिकॉर्ड हो जाएगा।
एयरपोर्ट पर क्या होगा?
ई-गेट पर बोर्डिंग पास स्कैन करें। उसके बाद कैमरे के सामने खड़े हो जाएं। आपके चेहरे का मिलान होते ही गेट खुल जाएगा।
जानें Blockchain kya hai in Hindi | Blockchain क्या है ? Blockchain तरह काम करता है
अगर आप ब्लॉकचेन(blockchain kya hai in Hindi) की बात करें तो सबसे पहले आपको यह मालूम होना चाहिए कि करप्ट ओं करंसी क्या है तभी आप अगर आप क्रिप्टो करेंसी के बारे में जानते हैं तो उसी का भाग है ब्लॉकचेन (Blockchain kya hai in Hindi) जिसके ऊपर क्रिप्टोकरंसी काम करता है ब्लॉकचेन (blockchain takniki kya hai) के अंदर क्रिप्टोकरंसी का हिसाब झाड़ी पूरा लेखा-जोखा रहता है।
चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले हैं की Blockchain क्या है ब्लॉकचेन(blockchain technology ko develop kaise kiya) कैसे काम करेगा? ब्लॉकचेन का types of blockchain with example कितना है? ब्लॉकचेन कैसे काम करता है?(blockchain project list) यहां पर मिल जाएंगे? तो आप इस आर्टिकल को पूरा पड़ेंगे तभी ही जान पाएंगे।-blockchain technology kya hoti hai
दोस्तों सबसे पहले आपको क्रिप्टो करेंसी (blockchain developer kya hai)के इतिहास को जानना होगा फिर आप ब्लॉकचेन(about blockchain in Hindi) के बारे में जान सकते हैं तो चलिए सबसे पहले कुछ शार्ट डिटेल में क्रिप्टो करेंसी के बारे में बताते हैं।
क्रिप्टो करेंसी क्या है ?
क्रिप्टो करेंसी एक प्रकार का डिजिटल करेंसी है जिसे डिसेंट्रलाइज्ड सिस्टम द्वारा मैनेज किया जाता है। क्रिप्टो करेंसी को आसान भाषा में कहें तो यह एक प्रकार का वित्तीय लेन देन है जैसे कि भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर के सामान होता है लेकिन फर्क इतना है कि इसे आप देख नहीं सकते हैं और ना ही छू सकते हैं इसीलिए इसे डिजिटल करेंसी भी कहा जाता है या आप इसे क्रिप्टो करेंसी कर सकते हैं।
क्रिप्टो करेंसी को 2009 में जापानी इंजीनियर की टीम के द्वारा तैयार किया गया था उस टीम का नाम सतोशी नाकामोतो था जो दुनिया में पहली बार क्रिप्टोकरंसी बनाकर लांच किया था जिस क्रिप्टो करेंसी को लांच किया था उसका नाम बिटकॉइन रखा गया जो आज के समय में बहुत लोकप्रिय नाम बन चुका है क्रिप्टोकरंसी में बिटकॉइन सबसे पहला ट्रेडिंग करने वाला करंसी हैं।
Blockchain क्या है यह किस तरह काम करता है
ब्लॉकचेन (Blockchain kya hai in Hindi) एक प्रकार का डिजिटल करेंसी का लेखा-जोखा रखने वाला वही खाता है जिस किसी भी प्रकार के डिजिटल करेंसी या किसी चीज को डिजिटल बनाकर उसका रिकॉर्ड रखने वाला टेक्नोलॉजी को ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी (blockchain technology in Hindi) कहा जाता है
ब्लाकचैन टेक्नोलॉजी (blockchain technology kya hota Hai) को क्रिप्टो करेंसी का बैकबोन भी कहा जाता है क्योंकि इसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ क्रिप्टोकरंसी में ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी किया जाता है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी एक प्रकार का डिसेंट्रलाइज टेक्नोलॉजी है जिससे किसी भी है पर द्वारा है कर पाना नामुमकिन है।
ब्लॉकचेन कैसे काम करती है
ब्लॉकचेन अपने डिजिटल जानकारी को रिकॉर्ड या डिसटीब्यूट करने का अनुमति प्रदान करता है ब्लॉकचेन में होने वाली लेनदेन का एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे नहीं बदला जा सकता है और ना ही हटाया जा सकता है ब्लॉकचेन को डिस्ट्रीब्यूटर लेजर टेक्नोलॉजी के रूप में भी जा ना जा रहा है ब्लॉकचेन को पहली बार 1991 में रिसर्च प्रोजेक्ट के रूप में लाया गया था लेकिन 2009 ईस्वी में इसका उपयोग बिटकॉइन के ऊपर किया गया था बाद में इसे कई क्रिप्टोकरंसी के साथ इस्तेमाल में लाया गया है।
ब्लॉकचेन नाम कैसे पड़ा
ब्लॉकचेन दो शब्दों को मिलाकर बनाया गया एक संपूर्ण शब्द है जिसमें कि पहला नाम Block और दूसरा नाम Chain जिसे जोड़ने पर ब्लॉकचेन (Blockchain kya hai in Hindi) कहा जाता है इसका मतलब यह होता है की ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में बहुत से ऐसे ब्लॉक है जिनका मतलब डाटा रखा जाना होता है जिसे अलग-अलग बॉक्स में अलग-अलग करेंसी का डाटा रखा जाता है।
जो एक दूसरे से लिंक डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है रहता है इसी डाटा का एक लंबी चैन बनते जाता है जिसे नया डाटा क्रिएट होता है उसे एक नए ब्लाक में दर्ज किया जाता है इसी प्रकार से नया डाटा को जोड़ा जाता है और सारे डेटा को एक साथ जोड़ने के बाद ही इसे ब्लॉकचेन ( Blockchain kya hai in Hindi) कह सकते हैं।।
What is Web 3.0? Next-generation of internet. Hindi
World Wide Web (सामान्यत जिसे: वेब कहा जाता है) वेब आपस में परस्पर जुड़े हाइपरटेक्स्ट डॉक्युमेंट्स का इन्टरनेट द्वारा प्राप्त करने का सिस्टम है। इंटरनेट पर जो भी कंटेंट उपलबध हैं वह सब वेब का ही हिस्सा है। वेब सर्वर्स पर स्टोर रहता है, जिन्हे वेब ब्राउजर की सहायता से हम उन वेब पन्नों को देख सकते हैं जिनमें टेक्स्ट, फोटो, वीडियो, एंवं अन्य मल्टीमीडिया होते है। तो चलिए जानते Web1.0, Web 2.0 और Web 3.0, बारे में और इनका क्या महत्व है?
Web 1.0 क्या है?
Web 1.0 वो चीज है जब इंटरनेट की शुरुआत हुई थी। वेब 1.0 “वर्ल्ड वाइड” वेब या इंटरनेट है जिसका आविष्कार वर्ष 1989 में हुआ था। उस समय इंटरनेट पर जो नंबर ऑफ़ वेबसाइट थी, वो एक मात्र 1 lack के अस पास थी पुरे विशव में और web1.0 केवल Read-Only Web था। क्योंकि उस समय इंटरनेट पर टेक्स्ट फॉर्मैट में जानकारियां मिलती थीं।
Web 1.0 चुनौतिया।
Web 1.0 में भले ही शुरुआती दिनों में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स थीं, परन्तु यह एक बंद वातावरण था, यूजर स्वयं इंटरनेट पर कोई कॉन्टेंट नहीं बना व पोस्ट कर सकता था। इसके बाद शुरुआत हुई Web 2.0 की।
Web 2.0 क्या है?
Web 2.0 सिर्फ Read-Only तक सिमित न रहकर “Write-Web” की सुविधा भी उपलबध है। अर्थात यूजर इसमें एडिटिंग भी कर सकते है। ( इसका उदहारण ‘विकिपीडिया’ है – जहा पर यूजर एडिटिंग भी कर सकता है ) Web2.0 में सबसे बड़ा फीचर है “क्लाउड कंप्यूटिंग” का। Web 2.0 के अंदर वेबसाइट बड़ कर करीब 100 मिलियन websites हो गई। इसी कारण इसमें यूजर भी दिन प्रति दिन बढ़ रहे है। अभी जो इंटरनेट हम यूज़ करते है वो भी Web 2.0 का ही चल रहा है।
Web 2.0 की विशिष्ट विशेषताए।
- Web 2.0 का, कांसेप्ट है की यहाँ पर वेबसाइट के लिए कंटेंट यूजर बनाते है और पूरी दुनिया को दिखाते है।
- Web 2.0; का अच्छा उदहारण फेसबुक है, जो की मार्कज़करबर्ग द्वारा बनिए गयी कंपनी है। जिसमे यूजर अपनी ID क्रिएट कर, कंटेंट, पोस्ट , विडिओ आदि डाटा जैसी चीज़े अपलोड कर सकते है।
- इसी से मिलता जुलता यूट्यूब का भी कांसेप्ट है जहा पर यूट्यूब कंटेंट तैयार नहीं करता बल्कि उसके यूजर तैयार करके अपलोड करते है।
- इसी कांसेप्ट को बड़ी-बड़ी कम्पिनिया फॉलो कर रही है (जैसे :- फेसबुक , यूट्यूब और टिंडर आदि)।
Web 2.0 में चुनौतिया।
Web 2.0 में, पोस्ट, आर्टिकल व विडिओ अपलोड करने के बाद यूजर का अधिकार ख़त्म हो जाता है। उदाहरण के तौर पर आपके द्वारा फेसबुक या यूट्यूब पर कोई कॉन्टेंट शेयर डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है करने के बाद यूज़ का अधिकार ख़त्म हो जाता है। कंपनी डेटा कॉन्टेंट को अपने हिसाब से कैसे भी यूज कर सकती हैं।
यही कांसेप्ट फेसबुक, टिम्बर व अन्य ऑनलाइन-वेब्सीटेस पर होता है की यूजर के द्वारा अपलोड किया गया कंटेंट कितने लोगो तक पोचेगा, search engine में पहले पेज पर दिखेगा की नई, पूरा कण्ट्रोल ऑनलाइन वेबसाइट का ही होता है। एक तरह से इनकी मोनॉपली होती है। फिर आता है Web 3.0,
Web 3.0 क्या है?
Web 3.0: – यह चैन है कंप्यूटर्स का, कोई भी एक सेंट्रलीसेड सिस्टम नहीं है। ( यहाँ पर कोई एक सेंट्रल कंप्यूटर का सर्वर नहीं होगा, मल्टीप्ल कम्प्यूटर्स होंगे व सब डिस्ट्रीब्यूटिव नेटवर्क से कनेक्टेड होंगे। यूजर का डाटा पर्टिक्यूलरली एक सर्वर पर न रहकर मल्टीप्ल डिस्ट्रिब्यूटेड नेटवर्क पर रहेगा व उसकी मल्टीप्ल copies उपलब्ध होगी )।
Web 3.0 का कॉन्सेप्ट इंटरनेट को डिसेंट्रलाइज करना है। ये ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित होगा। क्रिप्टोकरेंसी भी ब्लॉकचेन पर आधारित है। इस वजह से ही क्रिप्टोकरेंसी डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी है। अर्थात, इसे ऑपरेट करने के लिए कोई एक रेगुलेटरी बॉडी नहीं होती। Web 3.0 में कोई एक कंपनी नहीं होगी, बल्कि हर यूजर ही अपने अपने कॉन्टेंट के मालिक होंगे।
अमेज़न, फेसबुक व गूगल अदि जैसी बड़ी कम्पनीज के पास जो इंटरनेट की पावर है वो अब यूजर के पास व लोगो के पास चली जाएगी। व कुछ बड़ी -बड़ी कंपनियों की मोनॉपली नहीं रहेगी।
उदहारण Web3.0;
NFT यानि “Non Fungible Tokens “, ये एक तरह का डिजिटल एसेट व डाटा होता है, NFT डिस्ट्रब्यूटिवे नेटवर्क व ब्लॉकचैन नेटवर्क के कांसेप्ट पर कम करती है। इसमें यूजर इमेज, गेम, विडिओ व कंटेंट किसी को भी NFT में बदल कर मोनेटाइज कर सकता है। क्योकि यह एक तरह के डिजिटल टोकन ही होते है।
Web3.0 यूनिवर्स के अंदर ही NFT या नॉन फंगिबल टोकन आता है, NFT को खरीदने के लिए भी क्रिप्टो कोइन्स का उपयोग होता है। NFT केवल एक जेपीईजी फाइल होती है।
यूजर को NFT के अंदर कंटेंट व आर्ट की डिजिटल ओनरशिप मिलती है। NFT में फ्रॉड, गड़बड़ करना ना मुमकिन है, यही सबसे बड़ी ताकत होती है। NFT का web 3.0 टेक्नोलॉजी में सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। और लोगो के हाथो में वो ताकत दी जा सकती है, जो आज से पहले उनके पास नहीं थी।
Web 3.0 में भी चुनौतिया
Vastness: – इसके अंदर भी चुनौतियां है, इंटरनेट बहोत विशाल है इसके अंदर बिल्लिओन्स ऑफ़ पेजेज है। आज तक इंटरनेट बहोत पुराना हो गया है परन्तु हम अभी भी डुप्लीकेट टर्म को हटा नहीं पाए है। जैसे “Read ” व ” Form ” जिसके दो अर्थ होते है। फिर भी इंटरनेट पर एअक ही अर्थ दिखता है।
Vagueness (अस्पष्ट): – यूजर query अस्पष्ट होती है। इंटरनेट पर लोग सर्च करते वक्त अस्पष्ट होते है की उनके सवालो के जवाब उन्हें पूरी डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है तरीके से इंटरनेट पर नहीं मिलते।
जिसे संदेह पैदा होती है जैसे; COVID के समय पे लोगो को हल्का सा ज़ुखाम व भुखार होता तो वो गूगल पे सर्च करते, कुछ साइट्स पे उन्हें कुछ मिलता था परन्तु कुछ साइट पर यह डिक्लेअर कर दिया जाता है की COVID हो गया है। अगर इसका कण्ट्रोल लोगो के पास पंहुचा रहे है। तो इसकी अनसर्टेनिटी और बढ़ सकती है।
Web 3.0, अभी बहुत प्राथमिक कांसेप्ट है, लेकिन अगले 10 साल तक ऐसा भी मुमकिन है कि Web 3.0, Web 2.0 को रिप्लेस कर दे और इंटरनेट पूरी तरह बदल जाए। अभी इसको डेवेलप होने में और समय लगेगा।
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