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भारत में वित्तीय विनियमन

भारत में वित्तीय विनियमन
Q1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (NBFC) से आप क्या समझते हैं? इनकी वर्तमान स्थिति भारत में क्या है? इन कम्पनियों के महत्त्व को बतलाते हुए इनके विनियमन में परिवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए. What do you understand by Non-Banking Financial Companies (NBFCs)? What is their current status in India? Describing the importance of these companies, throw light on भारत में वित्तीय विनियमन the necessity to make changes in their regulations.

भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2015 जारी की.

भारत में वित्तीय विनियमन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 24 जून 2015 को वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2015 जारी की. यह अर्ध वार्षिक प्रकाशन का ग्यारहवां अंक है
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप-समिति द्वारा वित्तीय स्थिरता के जोखिमों और वित्ती्य भारत में वित्तीय विनियमन प्रणाली के आघात-सहनीयता के संबंध में किए गए सामूहिक मूल्यांकन को प्रस्तुत किया गया है.
इसके अलावा इस रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर पर भी प्रकाश डाला गया है
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2015 से सम्बंधित मुख्य तथ्य
वैश्विक परिदृश्य
वैश्विक आर्थिक परिस्थिति में दीर्घकालीन सुधार करना कठिन कार्य है साथ ही साथ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के मौद्रिक नीति रुख का प्रभाव-विस्तार (स्पिल ओवर) उभरती बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) के सम्मुख भी दिनों दिन चुनौती बढ़ती जा रही है.यूनानी ऋण संकट की घटनाएं और यूएस फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी के कारण निकट भविष्य में वैश्विक वित्तीय बाज़ार में अनिश्चितता की स्थिति कभी भी अस्थिरता पैदा कर सकती हैं.
भारत की स्थिति
जहां तक भारत की स्थिति का प्रश्न है तो समष्टि-आर्थिक परिदृश्य में काफी सुधार हुआ है तथा भविष्य में आर्थिक स्थिति और बेहतर होने की संभावना है.वित्तीय समेकन की दिशा में भी प्रगति हुई है.पिछले वर्ष के दौरान भारत में विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह की गति अच्छी रही तथापि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीति में होने वाले अप्रत्याशित परिवर्तनों के कारण वित्तीय बाज़ारों के विभिन्न हिस्सों में हो रहे ऐसे प्रवाहों की गति धीमी हो सकती है.
वित्तीय संस्थान: सुदृढ़ता और भारत में वित्तीय विनियमन लचीलापन
अनुसूचित व्यावसायिक बैंक-व्यापार में विकास के मामले में अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों के प्रदर्शन में 2014-2015 के दौरान सुधार आया है.सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बैंक-समूहों के बीच जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) के लिए सितंबर 2014 से मार्च 2015 के दौरान सबसे कम पूंजी रिकॉर्ड की गयी है.मार्च 2011 में पीएसबी द्वारा विदेशी बैंकों के सीआरएआर में अधिकतम गिरावट 1.1 प्रतिशत और निजी क्षेत्र के बैंकों में 1.8 प्रतिशत पंजीकृत किया गया था.
पीएसबी द्वारा सार्वजनिक भारत में वित्तीय विनियमन क्षेत्र के बैंकों में 4.6 फीसदी की तुलना में 13.5 फीसदी कुल अग्रिम परिसंपत्तियों के उच्चतम स्तर को दर्ज किया गया. भारत में वित्तीय क्षेत्र के विनियमन में नियामक सुधारो का कार्यान्वयन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है.
शहरी सहकारी बैंक और गैर बैंक वित्तीय कंपनियां- बेहतर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) की परिसंपत्ति गुणवत्ता बेहतर हुई है जबकि गैर बैंक वित्तीय कंपनियों की संपत्ति की गुणवत्ता में कमी आई है.
बैंकिंग क्षेत्र
सितंबर 2014 से बैंकिंग स्थिरता संकेतक और ढांचे में वर्णित तथ्यों के अनुसार बैंकिंग क्षेत्र के जोखिमों की तीव्रता कम हुई है, फिर भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के दबावग्रस्त अग्रिम अनुपात की बढ़ती प्रवृत्ति के माध्यम से आस्ति की गुणवत्ताओं में लगातार कमज़ोरी बने रहने के संकेत चिंताजनक हैं.मैक्रो दबाव परीक्षणों के माध्यम से यह तथ्य सामने आया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की आस्ति गुणवत्ता के स्तर में वर्तमान में जो गिरावट दर्ज हो रही है उसे आगे कई तिमाहियों में बने रहने की संभावना है.साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को क्रेडिट जोखिम के लिए किए जा रहे वर्तमान स्तर को बढ़ाना पड़ सकता है ताकि वे समष्टि-आर्थिक परिवेश में प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा होने की दशा में ‘प्रत्याशित हानियों’ की भरपाई करने की स्थिति में अपने आप को बनाये रखें. फिर भी प्रणाली के स्तर पर देखा जाए तो अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) न्यू नतम विनियामक स्तर के ऊपर रहा है जबकि इन परीक्षणों में प्रतिकूल समष्टि-आर्थिक परिस्थितियों की परिकल्पना की गई थी.
कॉर्पोरेट क्षेत्र
भारतीय अर्थव्यवस्था में समग्र लीवरेज स्तर अन्य अधिकार क्षेत्रों की तुलना में सुविधाजनक होने के बावजूद भी कॉर्पोरेट क्षेत्र के गिरते लाभ प्रतिशत और कम होती ऋण अदायगी क्षमतायें समस्या का कारण हो सकती हैं.जबकि अधिक बाजार पहुंच और बाजार अनुशासन को प्रोत्साहित करने के लिए विनियामक प्रयास से घरेलू वित्तीय बाजारों के विकास और बैंकिंग क्षेत्र को सहायता प्राप्त होगी.सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि की आवश्यकता के दायित्व को जारी रखना होगा.
प्रतिभूति और पण्य-वस्तु बाजार
समाधान के लिए उपाय किए जाने के बावजूद भी बढ़ती एल्गरिदम ट्रेडिंग को लेकर पैदा होने वाली चिंताएं भारत के प्रतिभूति बाजारों के लिए सावधानी की आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं.अनधिकृत पैसा जुटाने संबंधी गतिविधियों,भेदिया कारोबार (इनसाइडर ट्रेडिंग) से निपटने और डिपोजिटरीज़ में जोखिम प्रबंध प्रणालियों को सुदृढ़ करने के लिए विनियमों को और सख्त बनाने हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं.
मौसम से संबंधित आपदाओं की लगातार हो रही घटनाओं और विशेषकर छोटे तथा कमजोर किसानों पर इसके प्रभाव को देखते हुए कृषि बीमा पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है.
भौतिक पण्य-वस्तु बाजार के विनियमन और मुख्य रूप से कृषि पण्य-वस्तु डेरिवेटिव बाजारों तथा भौतिक (नकदी) बाजारों के बीच संबंध सुदृढ़ करने हेतु इन दोनों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की महती आवश्यकता है.
आगामी दशकों में जनसंख्या में हो रहे प्रत्याशित परिवर्तनों में वृद्धावस्था आय सुरक्षा और पेंशन योजनाओं पर ध्यान देने की भी आवश्यकता है.विशेषकर असंगठित क्षेत्र के मामले में जिसके लिए केंद्रीय सरकार द्वारा एक नई योजना अटल पेंशन योजना की घोषणा पहले ही की जा चुकी है
निष्कर्ष
वस्तुतः समग्र दृष्टि कोण से देखा जाय तो वृद्धि, मुद्रास्फीति, चालू खाता और राजकोषीय घाटे के संबंध में भारत तुलनात्मक रूप से मजबूत समष्टि आर्थिक मूलभूत तत्व वैश्विक कारकों के स्पिल-ओवर प्रभावों की स्थिति में भारतीय वित्तीय प्रणाली में उचित लचीलापन मुहैया कराता हैं.फिर भी वैश्विक वृद्धि के बारे में निरंतर अनिश्चितता और प्रभावी अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक नीति के समन्वय के अभाव में संतोषजनक स्थिति नहीं है.

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अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (फंड प्रबंधन) विनियमन 2022

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) ने 19 अप्रैल, 2022 को आधिकारिक भारत में वित्तीय विनियमन राजपत्र में निवेश कोष के लिए एक व्यापक नियामक ढांचे हेतु अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (फंड प्रबंधन) विनियमन 2022 को अधिसूचित किया है।

[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Eco-Bio-Tech GS Paper 3/Part 21

Q1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (NBFC) से आप क्या समझते हैं? इनकी वर्तमान स्थिति भारत में क्या है? इन कम्पनियों के महत्त्व को बतलाते हुए इनके विनियमन में परिवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए.

What do you understand by Non-Banking Financial Companies (NBFCs)? What is their current status in India? Describing the importance of these companies, throw light on the necessity to make changes in their regulations.

क्या न करें

❌प्रश्न के हर भाग को न पढ़ने की भूल न करें. इस प्रश्न में एक ही सवाल में 4 सवाल छुपे हैं.

क्या करें

✅परिभाषा से प्रारम्भ करें

✅यदि सम्बंधित अधिनियम याद न हो तो आप सरल रूप से NBFCs क्या है बस वही लिख दें.

✅प्रश्न के अंतिम भाग में आप देखेंगे — पूछा गया है कि “परिवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए”– आप जरूर बताएँ कि वर्तमान परिस्थिति क्या है और इसमें सुधार किस प्रकार लाना चाहिए. कई छात्र केवल वर्तमान कमियों के विषय में लिख देते हैं और यह नहीं बतलाते हैं कि क्या किया जाना चाहिए.

उत्तर :

भारत में कुछ ऐसी वित्तीय संस्थाएँ हैं जो बैंक नहीं है परन्तु वे जमाराशि स्वीकार करती हैं तथा बैंक की तरह ऋण सुविधा प्रदान करती हैं. भारत में इन्हें गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ (NBFCs) कहा जाता है.

गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (NBFC) उस कम्पनी को कहते हैं जो

✔ कम्पनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत हो,

✔ इसका मुख्य व्यवसाय उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/बांड्स/डिबेंचर/प्रतिभूतियों, पट्टा कारोबार, किराया-खरीद (हायर-पर्चेज), बीमा व्यवसाय, चिट सम्बन्धी कारोबार में निवेश करना हो, तथा

✔ इसका मुख्य व्यवसाय किसी योजना अथवा व्यवस्था के अंतर्गत एकमुश्त रुप से अथवा किश्तों में जमाराशियाँ प्राप्त करना है. किन्तु, किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि, औद्योगिक, व्यापार सम्बन्धी ये कंपनियाँ RBI अधिनियम, 1934 की धारा 45-IA के अंतर्गत RBI के साथ पंजीकृत होती हैं.

हाल के दिनों में, NBFC प्रक्षेत्र में अद्भुत वृद्धि हुई है. उदाहरण के लिए पाँच वर्षों में ही, NBFCs की बैलेंस शीट का आकार वर्ष 2015 के 20.72 लाख करोड़ रु. से बढ़कर वर्ष 2020 में 49.22 लाख करोड़ रु. (दोगुना से भी अधिक) हो चुका है. वर्तमान समय में भारत में करीब 9,560 गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ हैं. NBFC अपनी बैलेंस शीट के वित्तपोषण के लिए काफी हद तक सार्वजनिक निधियों पर निर्भर होती हैं.

महत्त्व

✔NBFCs वित्तीय क्षेत्रक में विविधता एवं दक्षता लाती हैं तथा ग्राहकों की आवश्यकताओं के प्रति इसे अधिक उत्तरदायी बनाती हैं.

✔NBFC संयुक्त रूप से बैंकिंग सुविधा से विहीन क्षेत्रों में भारत में वित्तीय विनियमन वित्तीय उत्पादों की पहुँच को बढ़ाकर बैंकिंग प्रक्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

✔ये कम्पनियाँ ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों के ग्राहकों को नवीन उत्पाद उपलब्ध कराती हैं.

✔ये दीर्घकालिक वित्तपोषण के तौर पर अवसंरचना क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराती हैं.

गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ (NBFCs) के विनियमन में बदलाव की आवश्यकता

NBFCs के विकास ने उसके सामने कई चुनौतियों को भी पैदा किया है, जैसे- वित्तीय क्षेत्र के अन्य तत्वों के साथ एकीकरण, NBFCs के अंदर का प्रबंधन इत्यादि. निम्नलिखित को तत्काल चुनौतियों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिन्होंने नियामकीय सुधार की आवश्यकताओं का सृजन किया है :-

✔प्रणालीगत जोखिमों का खतरा: ईंफ्रास्ट्रक्चर लेंडिंग एंड फाइनेंसियल सर्विसेज लिमिटेड (IL&FS) और दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (DHFL) भारत में वित्तीय विनियमन जैसी अग्रणी NBFCs को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा है. इससे NBFCs से लेकर समग्र वित्तीय क्षेत्रक के सामने भारत में वित्तीय विनियमन प्रणालीगत जोखिमों का खतरा उत्पन्न हुआ है.

✔बड़े NBFCs को पूर्ण रूप से बन जाने की अनुमति: हाल ही में, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के इंटरनल वर्किंग ग्रुप (IWG) ने बैंकिंग उद्योग के लिए लाइसेंसिंग नियमों को संशोधित किया है. चूंकि, प्रमुख NBFCs सशक्त रूप से बैंक बन गए हैं, इसलिए बैंक और NBFCs के विनियमन में निरंतरता लाने की आवश्यकता है, ताकि NBFCs से बैंकों को होने वाले लेन-देन समेकित रूप से हो सकें. दाहरण के लिए, यदि एक बड़े गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी के पास बैंक के समान पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) है, तो निम्न CAR वाली NBFC की भारत में वित्तीय विनियमन तुलना में उनके लिए बैंक के रूप में रूपांतरित होना आसान होगा.

✔फिनटेक सेक्टर का उद्भव: फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी सेक्टर के उद्भव ने नवीन वित्तीय सेवाओं को सृजित कर बैंकिंग सेक्टर के संचालन को बदल दिया है. ये वित्तीय सेवाएँ परंपरागत परिभाषाओं में फिट नहीं होती हैं. इसको देखते हुए, NBFCs के विनियमन में सुधार वस्तुतः बैंक, NBFCs और उभरते फिनटेक के बीच समेकित संचालन और संपर्क में तालमेल ला सकता है.

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अमरीकी वित्‍त विभाग ने एक बयान में कहा है कि भारत-अमरीका आर्थिक और वित्तीय भागीदारी बैठक में वैश्विक महामारी के बाद आर्थिक सुधार और वित्तीय विनियमन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी।

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