लाभ पद्धति

यही मेरी शुभकामना है. वहीं देवघर एसपी राकेश बसंल ने पुलिस ड्यूटी मीट की चर्चा कर कहा कि जो भी कुछ सीखें उसे निश्चित रूप से बेहतर करने व दिखाने का प्रयास करें. रांची से आये सत्येंद्र सिंह (परीक्षक सह सहायक निदेशक राज्य विधि विज्ञान प्रयोग शाला) ने वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित अपराध व केस आदि के निष्पादन की जानकारी दी. मंच संचालन करते हुए सार्जेट मेजर नित्यानंद पाठक ने उपस्थित पुलिस कर्मियों को शपथ दिलाया. इस अवसर पर देवघर एसडीपीओ अनिमेष नैथानी, देवघर हेड क्वार्टर डीएसपी नवीन कुमार, एसडीपीओ मधुपुर बिरेंद्र कुमार चौधरी, गोड्डा एसडीपीओ राजेश कुमार, पुलिस निरीक्षक राम मनोहर शर्मा, मदन मोहन प्रसाद, अरविंद उपाध्याय, रांची से आये परीक्षकों सहित काफी काफी संख्या में देवघर और संथाल परगना जिलों के पुलिस पदाधिकारियों व कर्मी उपस्थित थे.
नई ड्रिप तकनीकी व मल्चिंग पद्धति लाभ पद्धति से खेती में लाभ कमा रहे किसान
बैतूल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। जिले के बैतूल विकासखंड में आने वाले ग्राम अमदर के किसान बलीराम बनकर खेती में नवीन ड्रिप तकनीकी एवं मल्चिंग पद्धति का उपयोग कर सब्जी की खेती कर रहे हैं। इस प्रयास से वे खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ ही दोगुना आय हासिल करने में कामयाब भी हो रहे हैं। किसान बलीराम ने एक हेक्टेयर खेत में टमाटर व पत्ता गोभी की
बैतूल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। जिले के बैतूल विकासखंड में आने वाले ग्राम अमदर के किसान बलीराम बनकर खेती में नवीन ड्रिप तकनीकी एवं मल्चिंग पद्धति का उपयोग कर सब्जी की खेती कर रहे हैं। इस प्रयास से वे खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ ही दोगुना आय हासिल करने में कामयाब भी हो रहे हैं। किसान बलीराम ने एक हेक्टेयर खेत में टमाटर व पत्ता गोभी की फसल लेकर ढाई से तीन लाख रुपये का मुनाफा कमाया है। लाभ पद्धति उद्यानिकी योजनाओं के माध्यम से खेती में हो रहे मुनाफे से किसान बेहद खुश हैं और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। बलीराम ने बताया कि पहले लाभ पद्धति वे एक हेक्टेयर में 35 से 40 हजार रुपये लागत लगाकर लगभग 30 क्विंटल कृषि फसलों का उत्पादन करते थे। इससे उन्हें लगभग 20 से 25 हजार रुपये तक की ही आमदनी होती थी। हमेशा अपने उत्पादन की लागत कम एवं आय अधिक बढ़ाने के बारे में सोचते थे। वर्ष 2017-18 में उद्यानिकी विभाग से फसलों की नवीन तकनीकी की जानकारी मिलने पर उन्होंने शुरुआत में धनिया, पत्तागोभी एवं टमाटर की खेती छोटे स्तर पर प्रारंभ की। इन फसलों को स्थानीय बाजारों में बेचने पर उन्हें कृषि फसलों की तुलना में कम लागत में अधिक मुनाफा मिला। इसके पश्चात् उन्होंने उद्यानिकी फसल टमाटर और पत्तागोभी की खेती शुरु की। उन्होंने नवीन ड्रिप तकनीकी एवं मल्चिंग पद्धति का उपयोग करते हुए आधा हेक्टेयर में टमाटर एवं आधा में पत्तागोभी की फसल लगाई। इससे उन्हें 100 से 150 क्विंटल पत्तागोभी एवं 175 से 200 क्विंटल टमाटर का उत्पादन हुआ। यह फसल स्थानीय बाजारों में बेचकर बलीराम को ढाई से तीन लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ।
हल्दी की उन्नत पद्धति से खेती कर कमाएं आर्थिक लाभ
हल्दी की उन्नत काश्त पद्धति से खेती
हल्दी एक महत्वपूर्ण मसाले वाली फसल है जिसका उपयोग औषधि से लेकर अनेकों कार्यो में किया जाता है। इसके गुणों का जितना भी बखान किया जाए थोड़ा ही है, क्योंकि यह फसल गुणों से परिपूर्ण है इसकी खेती आसानी से की जा सकती है तथा कम लागत तकनीक को अपनाकर इसे आमदनी का एक अच्छा साधन बनाया जा सकता है। यदि किसान भाई इसकी खेती ज्यादा मात्रा में नहीं करना चाहते तो कम से कम इतना अवश्य करें जिसका उनकी प्रति दिन की हल्दी की मांग को पूरा किया जा सकें। निम्नलिखित शास्त्र वैज्ञानिक पद्धतियों को अपना कर हल्दी की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
हल्दी की खेती हेतु भूमि की अच्छी तैयारी करने की आवश्यकता
20 से 25 टन /हे. के मान से अच्छी लाभ पद्धति सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए क्योंकि गोबर की खाद डालने से जमीन अच्छी तरह से भुरभुरी बन जायेगी तथा जो भी रासायनिक उर्वरक दी जायेगी उसका समुचित उपयोग हो सकेगा। इसके बाद 100-120 कि. नत्रजन 60-80 कि. स्फुर 80-100 तथा कि./हे. के मान से पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। हल्दी की खेती हेतु पोटाश का बहुत महत्व है जो किसान इसका प्रयोग नही करते है हल्दी की गुणवत्ता तथा उपज दोनों ही प्रभावित होती है। नत्रजन की एक चैथाई मात्रा तथा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोनी के समय दी जानी चाहिए एवं नत्रजन की बची मात्रा की दो भागों में लाभ पद्धति बांटकर पहली मात्रा बुआई के 40 से 60 दिनों बाद तथा दूसरी मात्रा 80 से 100 दिनों बाद देना चाहिए।
जैविक खेती और ड्रिप सिंचाई पद्धति से धरमदास ने खेती को बनाया लाभ का धंधा
जिले के कोतमा तहसील अंतर्गत ग्राम बसखला के धरमदास कम क्षेत्रफल वाले खेत में जैविक खेती और ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपनाकर आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ली है। पहले परंपरागत खेती पिता द्वारा की जा रही थी जिससे खेती से खास लाभ नहीं मिल रहा था।
अनूपपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जिले के कोतमा तहसील अंतर्गत ग्राम बसखला के धरमदास कम क्षेत्रफल वाले खेत में जैविक खेती और ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपनाकर आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ली है। पहले परंपरागत खेती पिता द्वारा की जा रही थी जिससे खेती से खास लाभ नहीं मिल रहा था। धरमदास अपने पिता की करीब 3 हेक्टेयर जमीन से सब्जी और धान तथा गेहूं की फसल लगाना शुरू किया सिंचाई के लिए नहर का पानी मिल रहा था लेकिन जरूरी मार्गदर्शन न मिलने से वह निराश था। कक्षा 12वीं की पढ़ाई के बाद खेती के क्षेत्र में कदम रखने वाले धरमदास ने 3 वर्ष पहले उद्यानिकी विभाग के आए अधिकारियों से मिली सलाह के बाद ड्रिप पद्धति के जरिए खेती करना आरंभ किया सब्जियों से फायदा मिलना शुरू हुआ और रसायनिक खाद का उपयोग करना बंद किया तथा जैविक खाद का इस्तेमाल से फसल अच्छी होने लगी खेत में ही नाडेप बनवाकर लाभ पद्धति लाभ पद्धति जैविक खाद तैयार किया। इन दिनों धरमदास खेत में करीब 2 हेक्टेयर एरिया में चना लगाई हुई है जो काफी अच्छी तैयार हुई है एक हेक्टेयर में मटर, टमाटर और करेला भी लगाया हुआ है। यहां तक की खेती करने के लिए जगह की कमी पड़ने पर 10 एकड़ भूमि लीज पर लेकर गेहूं भी लगाई हुई है। धर्मदास ने कहा कि लॉकडाउन के कारण 2 वर्ष में ज्यादा लाभ तो नहीं मिला लेकिन लागत जरूर निकल आए वह खुद घंटों खेत पर समय देते हैं। कृषि और उद्यान के विभाग से उन्हें उन्नात खेती करने की प्रेरणा मिली। किसानों का एक समूह बना हुआ है जिसमें लाभ पद्धति फसल की नई तकनीक की जानकारी मिलती है उसका भी सहारा लिया और यूट्यूब में लाभ पद्धति बताए जाने वाले सलाह से उन्हें काफी मदद मिली है। अब वह खेती के जरिए परिवार को धीरे-धीरे अच्छी स्थिति पर ला रहे हैं। इसी तरह सरकार और विभाग द्वारा जो लाभ पद्धति उन्हें सहायता राशि दी जा रही है उससे वह अपने खेती के व्यवसाय को आगे बढ़ा पा रहे हैं जैविक खेती और ड्रिप सिंचाई पद्धति जिससे पानी की खपत कम होती है किसानों के लिए दोनों उपाय एक वरदान की तरह है जिसे कोई भी किसान इन उपायों को अपनाकर बेहतर फसल का उत्पादन कम जमीन पर भी कर सकता है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति से मिलेगा लाभ
जागरण कार्यालय, जामताड़ा : चित्तरंजन क्लब में विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर चिरेका कस्तूरबा गांधी अस्पताल की ओर से सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि चिरेका के महाप्रबंधक राधेश्याम व बीआर सिंह पूर्व रेलवे के सीएमडी डॉ. एसएस राठौर ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अवसर पर चिरेका महाप्रबंधक ने कहा कि इस सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम से रेल कर्मियों व उनके परिजनों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति से लाभ मिलेगा।
मौके पर पूर्व रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे, पूर्व मध्य रेलवे तथा चिरेका से आए चिकित्सकों ने विभिन्न औषधीय क्षेत्र में अपने ज्ञान को समृद्ध करने के लिए भाग लिया। डॉक्टरों ने महत्वपूर्ण विषयों पर शोधपत्र भी प्रस्तुत किए। दूसरे सत्र में रेलवे के विभिन्न उत्पादन इकाइयों से डॉक्टरों ने विभिन्न चिकित्सा विषयों पर प्रेरणादायी व्याख्यान प्रस्तुत किए। ज्ञात रहे कि चिरेका के कस्तूरबा गाधी अस्पताल के द्वारा विभिन्न विषय वस्तु पर सतत् चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम नियमित अंतराल पर आयोजित किये जाते हैं। जिससे भारतीय रेल के चिकित्सकों को औषधि विज्ञान एवं उपयोग पर अत्याधुनिक जानकारी उपलब्ध होती है। इस अवसर पर आयोजन कमेटी के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार, कार्यक्रम के संचालक डॉ. ए मजूमदार, डॉ. बीके सामंत आदि कई जाने माने चिकित्सक व अधिकारी उपस्थित थे।
वैज्ञानिक पद्धति का लाभ उठायें जवान : डीआइजी
जसीडीह: संताल परगना में नक्सलवाद बड़ी चुनौती है. इसमें संथाल परगना क्षेत्रीय पुलिस ड्यूटी मीट कारगर साबित होगी. इसमें हत्या से संबंधित वैज्ञानिक पद्धति का ज्ञान पुलिस पदाधिकारियों लाभ पद्धति व कर्मियों को दिया जाता है.
उक्त बातें डीआइजी प्रिया दुबे ने बुधवार को जसीडीह स्थित पंचायत प्रशिक्षण संस्थान के ऑडोरियम में आयोजित संथाल परगना क्षेत्रीय पुलिस ड्यूटी मीट में बतौर मुख्य अतिथि कही. उन्होंने कहा कि इस मीट में कंप्यूटर की जानकारी, आदर्श केस डायरी लिखना, एवं कानून की सही जानकारी, किसी समस्या का सामधान आदि के बारे में जानकारी दी जाती है. डीआइजी ने कहा कि हमारे पुलिस पदाधिकारी वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल करते हुए निष्पक्ष भाव से मामलों का निष्पादन करें तथा पदाधिकारियों को कानून के बारे में हर प्रकार की जानकारी हो इसके लिए प्रत्येक वर्ष पुलिस ड्यूटी मीट का आयोजन किया जाता है.